"यह विवाद का तीसरा दिन था। मग्घे की लाश पड़ी थी।

"यह विवाद का तीसरा दिन था। मग्घे की लाश पड़ी थी। मृत्यु यकीनन आज ही हुई थी, मगर कल से ही उसे लोग मुर्दा घोषित कर चुके थे। घर में कलह और पंवारा चरम पर था। मीरावती को कुछ औरतें खींच-खींचकर घर से बाहर कर दिया करती थीं, मगर थोड़ी देर बाद वह रोते-सुबकते घर में दाखित हो जाती और फिर पति की लाश से चिपककर दहाड़ें मार कर रोती थी। वैसे भी वो घर कहाँ था, बस एक छप्पर जो दोनों तरफ से खुला था। महज एक टूटे-फूटे फूस की आड़ थी, जिसके छेद में टीन के कुछ बक्से दिखाई पड़ रहे थे। एक बक्सा खुला हुआ था जिसका सामान जमीन पर छितराया पड़ा था। तब तक मीरावती का देवर राम समुझ दनदनाता हुआ अंदर आया और उसने मीरावती को पीछे से खड़ी लात जड़ दीमीरावती दर्द से बिलबिला उठी। उसकी गोद की लड़की दूर जा गिरी और चीखें मारकर रोने लगी। राम समुझ ने मीरावती के बालों को खींचते हुए कहा “उठ रांड़, मेरे भाई को तो खा गई, अब क्या पूरे घर को खाएगी? निकल यहां से, अब तेरा यहां क्या रखा है?" मीरावती कुछ न बोली, बस बढ़कर बच्ची को उठाया और उसे चुप कराया। ऐसी मार-पीट, खींच-तान बड़ी देर तक होती रही। एक तरफ मीरावती के जेठ और देवर का तर्क था कि मग्घे की मृत्यु मीरावती की लापरवाही एवं अपलक्ष्य से हुई है इसीलिए उसे वहां से चले जाना चाहिए दूसरी तरफ रोतीफफकती मीरावती थी जो पति-वियोग से आक्रान्त थी, उसके चार अबोध बच्चे थे, वह तर्क विहीन थी। उसके साथ सिर्फ उसके आंसू, सिसकी और दुहाइयां थीअगल-बगल के लोग परेशान थे कि कहीं थाना-पुलिस न हो जाए। इस खुसर पुसर से आजिज होकर गांव के चौकीदार ने प्रधान को बताया कि अगर फौरन दाह-संस्कार नहीं कराया गया तो मजबूरन उसे थाने को खबर करनी पड़ेगी और एक बार अगर थाने को खबर दे दी गई तो कई लोग कानून के लपेटे में आ सकते हैं। यह बात प्रधान की समझ में तुरंत आ गई कि अगर कहीं बात बढ़ गई तो उसने पिछले दो साल से मनरेगा की जो फर्जी मजदूरी मृतक के नाम पर हड़पी है, उसकी भी पोल खुल सकती है। खामखां की सांसत से बचने के लिए प्रधान ने अपने पंच बुलाए, मृतक के घर पहुँचकर सभी को डपटा। प्रधान ने पहले तो घुड़कियां दीं फिर न्याय की बात की। क्योंकि पिछले दो तीन सालों की मग्घे की मजदूरी दस हजार से भी ज्यादा निकल रही थी। बैठे-बिठाए मजदूरी का कमीशन तय था, साठ फीसदी प्रधान का, बीस फीसदी बैंक वालों का, दस फीसदी सरकारी बाबुओं का और दस फीसदी उसका जिसके नाम का जॉब कार्ड हो, यानी मजदूरी उठाने वाले मग्घे का।


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